Friday, April 11, 2014

निशब्द

सप्ताह भर उसकी राह तकने के बाद आज उसकी खबर मिली। पिछले 8 महीनों से उससे एक अनजाना सा रिश्ता
बन गया था। हर सुबह वो मुझे मिलता और एक हल्की सी मुस्कान की अदला बदली के बाद हमारी मुलाकात खत्म हो जाती। हां कभी कभी मुस्कुराहट से आगे बढ़कर इशारों में कुछ गुफ्तुगु जरूर हो जाया करती थी। मैं उसे इशारा करता और वो शराब की खाली बोतल और प्लास्टिक उठाकर अपने पिता की साइकिल पर रखे टाट में डाल देता और आंखों को झपकाकर शुक्रिया अदा करता। मैं भी मुस्काकर आगे बढ़ जाता। ये हमारा नित्यकर्म बन गया था। भारी बारिश और मेरी तबियत खराब होने के मौके पर उससे मुलाकात नही हो पाती थी। तब ऐसा लगता था मानो उस दिन जि़ंदगी का कोई अहम हिस्सा छूट गया हो। न कोई बात और न कोई औपचारिक मुलाकात फिर भी वो मेरा खास बन चुका था। स्वाभिमानी तो इतना की अच्छे अच्छे शरमा जाएं। एक बार मैंने उसे पैसे देने की कोशिश की तो उसने सिरे से नकार दिया। मैने उससे माफी मांगी और वो फिर मुस्कुरा दिया मानो उसका खोया सम्मान मैंने उसे लौटा दिया हो। इतनी लम्बी जान पहचान के बाद भी मुझे उसका नाम नही पता । है न हैरानी की बात । कभी संवाद नही हुआ तो पूछा भी नही। लेकिन बीते कुछ रोज़ से वो दिखा ही नहीं और न ही उसके पिता। लगा शायद उन्होंने काम की जगह बदल ली होगी। लेकिन आज अचानक उसके पिता से भेंट हुई। नज़री मिली तो मैं मुस्कुरा दिया लेकिन सामने से जो जवाब आया वो विचलित कर देने वाला था। मैं उनसे अपने दोस्त के बारे में कुछ पूछ पाता उनकी आंखे छलक आई। कुछ तो ऐसा हुआ है जो नही होना चाहिए था। उनकी बात खत्म होती उससे पहले मेरी पलके भीग चुकी थी। मेरा हाथ उनके कंधे पर जा पहुंचा, वो सकपकाए। मैंने और कसके उनका कंधा भींचा। उन्होंने भी मेरा हाथ पकड़ा और फिर हम दोनों खूब देर तक रोते रहे। आज गरीबी ने मेरा वो पल छीन लिया था जिसका इंतजार मुझे रोज रहता था। अब कैसे हिम्मत होगी मेरी उस सड़क पर चलने की जहां कल तक कोई मेरा इंतजार करता था। अब कहां से जुटा पाउंगा मैं हिम्मत चुपके से कांच की बोतले फंेकने की जिसे लेने के लिए वो मेरे करीब आया करता था। नियती भी कभी कभी कितना क्रूर मजाक करती है । जिसे हम अपने सबसे करीब मानते हैं वहंी हमसे मीलों दूर चला जाता है। ऐसी जगह जहां न कोई ट्वीटर या फेसबुक काम करता है। न ही उसे गूगल ही ढूंढ पाता है। वि़ज्ञान सहुलियत दे सकता है, उपयोग, भोग, विलासिता आदि के साजो समान दे सकता है लेकिन दिल से निकली हुई सच्ची खुशी नही दे सकता । अब मलाल होता है कि मैंने उससे बात क्यों न की, उससे उसका नाम क्यों नही पूछा? फिर अगले ही पल लगता है कि हमारे बीच जो संबंध रहा वो न तो शब्दों से जुड़ा था और न ही शब्दों से बयां हो सकता है।