Wednesday, December 26, 2012

यादें..........याद आती हैं





मनुष्य कितनी भी कोशिश करले अपने अतीत से भागने की लेकिन समय उसे भूलने ही नही देता। आज न जाने क्यो तीन छोटे बच्चों को देखकर मुझे अपने साथ बीता हुआ एक वाक्या याद आ गया। और जब याद आती है तो आंखों को नम होना तो लाजि़मी है। कभी कभी सोचता हूं कि समय इतना क्रूर क्यो होता है, फिर दूजे ही पल उसे एक डरावना ख़्वाब समझ कर भुलाने की कोशिश करता हूं लेकिन ऐसा लगता है मानो समय बार बार सामने से आकर उन पुरानी यादों को जि़ंदा कर मानो मुझपर अट्ठाहस करता हो। सैलून में आए उन नन्हों बच्चों और उनकी शरारतें देख मुझे वो पल याद आ गया जब मेरी बहन मुझे इसी तरह से बचपन में सैलून में मेरे बाल कटवाने ले जाया करती थी । हांलांकि वो मुझ से उम्र में छोटी थी लेकिन मम्मी हमेशा उसे मेरे साथ भेज दिया करती थी । इसका भी कारण था और वो था मेरा शर्मीला मिजाज। मै नाई से अपने बारे में बोल भी पाउंगा या नही, इसका मम्मी को शक था और हमेशा मेरे साथ मेरी बहन को भेज देती थी। वो जब भी मेरे साथ जाती तो नाई से कहती कि इसकी (मेरे लिए) ‘कमल’ भी काट देना। वो कहना कलम चाहती थी लेकिन हर बार कमल ही बोल जाती थी। काफी समय तक ये हमारे लिए मजाक का विषय बना रहा। ़

वही बैठे बैठे मेरे नज़र सड़क की ओर गई । मैंने दो बच्चों को साइकिल पर जाते हुए देखा। दोनो एक ही साइकिल पर सवार थे । भाई चला रहा था और बहन पिछले टायर में निकाले गए रौड पर खड़ी थी। इस नजारे ने भी मुझे वहीं यादों के समुंदर में गोते लगाने भेज दिया। मुझे आज भी याद है कि मुझे साइकिल चलानी मेरी छोटी बहन ने ही सिखाई थी। वो काफी हिम्मती लड़की थी। उसने हर चीज मुझसे पहले ही हासिल करली । चाहे वो साइकिल चलाना हो, एक्टिवा, बाइक या कार चलाना सीखना हो या महंगे मोबाइल का शौक पूरा करना हो। इतना ही नही पढाई भी उसने मुझ से ज्यादा और मुझसे पहले पूरी की और.............

और दुनिया को अलविदा भी हम सबसे पहले ही कह कर वो दूर........बहुत दूर चली गई।